बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्राइवेट डेवलपर्स के हाथों शिकार बनने वाले झुग्गीवासियों की दुर्दशा पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य मुंबई को झुग्गी-झोपड़ी मुक्त शहर बनाना होना चाहिए। जस्टिस जीएस कुलकर्णी और सोमशेखर सुंदरेसन की पीठ ने महाराष्ट्र स्लम एरिया (सुदार, निक्सी और पुनर्विकास) एक्ट की कार्यान्वयन की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने कहा, “लक्ष्य मुंबई, जिसे अंतरराष्ट्रीय शहर माना जाता है और जो भारत की वित्तीय राजधानी है, उसे झुग्गी-झोपड़ी मुक्त शहर बनाना है। हमें एक बिलकुल झुग्गी-झोपड़ी मुक्त शहर बनाना होगा। यह एक्ट (अधिनियम) हमें मुंबई को झुग्गी-झोपड़ी मुक्त शहर बनाने में मदद करेगा।” जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार एक्ट का परफॉर्मेंस ऑडिट करने के लिए पिछले सप्ताह पीठ का गठन किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कार्यप्रणाली जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम की कार्यप्रणाली पर चिंता जताई। उन्होंने सतत विकास की आवश्यकता पर जोर दिया। पीठ ने झोपडपट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण और अन्य पक्षों को अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई 20 सितंबर को तय की। अदालत ने सवाल करते हुए कहा, “भविष्य के बारे में सोचिए। अगले 100 वर्षों में यही होगा। क्या वहां सिर्फ गगनचुंबी इमारते ही रहेंगी? क्या हमें खुले स्थानों की जरूरत नहीं? लंदन जैसे अन्य शहरों का उदाहरण देते हुए अदालत ने कहा, हमें सतत विकास की जरूरत है। हम केवल कंक्रीट का जंगल नहीं बना सकते, जिसमें कोई खुली जगह न हो।” अदालत ने झोपड़पट्टी पुनर्विकास परियोजनाओं में देरी को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “हम वास्तव में झुग्गीवासियों की दुर्दशा कोलेकर चिंतित हैं। केवल इसलिए कि आप झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आपको डेवलपर्स पर छोड़ दिया जाए। झुग्गीवासी उन डेवलपर्स के हाथों पीड़ित हैं जो काम करने का इरादा नहीं रखते। इस स्थिति में सरकार और झोपडपट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण मूकदर्शक बनकर बैठे हैं।” अदालत ने कहा कि पुनर्विकास परियोजना का निर्माण और उसका रख-रखाव उच्चतम गुणवत्ता का होना चाहिए। ऐसा न हो कि 10 साल बाद फिर से इमारत दोबारा विकास करना पड़े। रखरखाव के अभाव में ये जर्जर हो रहे हैं। कोर्ट ने सरकार को प्रवासी नागरिकों के लिए किराये की आवास या किराए की नीति पर विचार करने का भी सुझाव दिया।