दिग्रस तहसील में कथित विकास कामों की डींगे हांकने वालों का कच्चा चिट्ठा स्मशान भूमि के लिए तरस रहे आरंभी गांव में आकर खुलता है।
यूं तो! आरंभी गांव को तहसील के सबसे बड़ा और ज्यादा आबादी वाले गांव का दर्जा हासिल है। लेकिन, बरसों से यहां के लोग गांव से सटी खुली जमीन पर अंतिम संस्कार की विधि को अंजाम दे रहे है। मालूम हो कि,बुधवार 13 जुलाई को एक मृत हुई वृद्ध महिला का अंतिम संस्कार भारी बारिश के दौरान ताडपत्री (तिरपाल) बांध कर किया गया। बारिश में इस समस्या की तीव्रता और बढ़ जाती है। क्यों कि खुली जमीन पर स्थित इस स्मशान भूमि में न तो छत है और न ही रास्ता। सूत्रों के अनुसार जिस जमीन पर स्मशान भूमि है वह जमीन वनविभाग की है। गांव में मृत व्यक्तियों को दफनाने या उनके अंतिम संस्कार की विधि को अमल में लाने में मृतकों के परिजनों को जीते जी नरक यातनाओं से गुजरना पड़ता है। खुले में अंतिम संस्कार करने को मजबूर आरंभी निवासियों में इस समस्या को लेकर रोष व्याप्त है। मालूम हो कि आरंभी से करीब में स्थित चिरकुटा, फुलवाडी, वडगाव, झिरपूरवाडी इन छोटे गांव में शेड से बनी हुई स्मशानभूमी है । लेकिन आरंभी का शुमार तहसील में सबसे बड़े गांव में किया जाता है। लेकीन शर्म की बात है कि इस गांव में मरने वाले व्यक्ति को मरने के बाद भी उचित सम्मान नही मिल पाता उस पर खुले में अंतिम संस्कार किया जाता है। अचरच इस बात का है कि, दिग्रस तहसील में विधायक संजय राठोड द्वारा किए गए विकासकार्यो का यूं तो खूब ढिंढोरा पीटा जाता है। लेकिन अफसोस इस बात का है कि बंजारा समाज बहुल आरंभी गांव में मरने वाले व्यक्तियों पर खुले में अंतिम संस्कार किया जा रहा है। आखिर क्यों विधायक संजय राठोड ने, स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने और स्थानीय प्रशासन ने भी इस समस्या की ओर अनदेखी जारी रखी है? और आखिर कितने दिनो तक आरंभी निवासियों को इस नरक यातना से गुजरना पड़ेगा? ऐसे सवाल अब उठने लगे है।