जैन धर्म अनुयायी राष्ट्र-संत ललित प्रभजी महाराज के सावनेर नगरीमे आगमन पर सभी समाज बंधूओने भव्य स्वागत किया। इस अवसर पर ललित प्रभजी महाराज ने कहा कि अच्छे व्यक्तित्व की निशानी हैं सकारात्मक सोच, मधुर वाणी, विनम्र व्यवहार, उदार दिल और समय व वचन का पाबंद उन्होंने कहा कि स्वयं को सदा मुस्कुराते हुए और सकारात्मक रखिए। मुस्कान से जहाँ आपका दूसरे पर सीधा पॉजीटिव असर पड़ेगा, वहीं सकारात्मक व्यवहार से आप सीधा दूसरे के दिल में उतर जाएँगे। किसी का सुन्दर चेहरा केवल दो दिन याद रहता है, पर आपके द्वारा किया गया मधुर व्यवहार आपको चिर स्थायी बना देता है। हम जीवन में जितना महत्त्व अपने भेष को दें उतना ही अपनी भाषा को भी दें। व्यक्ति की भाषा ही उसके जीवन को परिभाषित करती है। जिन्हें बोलना आता है उनकी मिर्ची भी बिक जाती है, बोली में मिठास और अदब न हो तो मिठाई भी पड़ी रह जाती है। संत ललित प्रभ जी शुक्रवार को मेन रोड स्थित संघवी आवास जैन देरासर में श्रद्धालु भाई बहनों को संबोधन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन की गाड़ी में विनम्रता का ग्रीस लगाइये। हर सुबह घर के बड़े-बुजुर्गों के चरण-स्पर्श का सौभाग्य प्राप्त कीजिए और सबके साथ प्रेम, सम्मान और विनम्रता से पेश आइये, आपको उनके आशीष, आत्मीयभाव और सहयोग तीनों प्राप्त होंगे। उन्होंने कहा कि मौलिकता में विश्वास रखिए। औरों से प्रेरणा लीजिए, पर औरों की नकल करके स्वयं को मनुष्य से बंदर मत बनाइये। याद रखिए, नकल करके आज तक कोई महान नहीं बन सका है। उन्होंने कहा कि अच्छे व्यक्तित्व के लिए मैत्री भाव रखें। मित्रता जीवन में माधुर्य घोलती है। हम नए मित्र अवश्य बनाएँ, पर पुराने मित्रों को न भूलें। नए मित्र अगर चाँदी हैं तो पुराने मित्र सोना। मित्रों से प्रेम करने का मतलब यह नहीं है कि आप अपने भाइयों की उपेक्षा करें। माना मित्र हीरे की तरह हैं और भाई सोने की तरह। हीरे की कमी है कि वह एक बार टूट गया तो फिर नहीं जुड़ेगा, पर सोना टूट गया तो भी उसे फिर से साँधा-जोड़ा जा सकता है। किसी के द्वारा अपमान किये जाने पर महज मुस्कुरा दीजिए। उसे अपनी ओर से वह दीजिए जो आप अपने निर्मल हृदय से अच्छे से अच्छा दे सकते हैं। जब भी किसी से मिलें, उन्हें कुछ-न-कुछ अवश्य देते रहें फिर चाहे वह धन हो, उपहार हो, प्रेम हो अथवा उसकी प्रशंसा।
डॉ मुनि शांतिप्रिय सागर ने कहा कि सूर्याेदय से पूर्व जागने की आदत डालिए। सुबह जल्दी जागने वाले महानुभाव उगते हुए भाग्य के सूर्य का दर्शन करते हैं, जबकि विलम्ब से उठने वाले हमेशा डूबते हुए सूरज का ही दीदार करते हैं। सुबह 5.30 बजे उठना और रात को 10.30 बजे सोना आरोग्य, बुद्धि, धनार्जन और भाग्योदय के लिए पहला सार्थक कदम है। प्रतिदिन एक घंटा स्वास्थ्य के लिए प्रदान कीजिए। शारीरिक स्फूर्ति के लिए 20 मिनट गति के साथ टहलिए। प्राण-ऊर्जा बढ़ाने के लिए 20 मिनट योग और प्राणायाम का अभ्यास कीजिए और मानसिक शांति तथा आध्यात्मिक चेतना के विकास के लिए 20 मिनट ध्यान कीजिए। उन्होंने कहा कि प्रतिदिन सुबह उठकर माता-पिता के चरण स्पर्श अवश्य कीजिए। उनके आशीर्वाद की बदौलत आपका पूरा दिन सुकून भरा बीतेगा। दिनभर में जो-जो कार्य निपटाने हैं, उनकी सूची सुबह ही तैयार कर लीजिए। व्यवस्थित ढंग से दिन की शुरुआत करने वाले एक दिन में 7 दिनों का काम निपटा लिया करते हैं। घर से बाहर निकलते समय अपने घरवालों को कहकर जाइए। ऐसा करने से उनकी सद्भावना का रक्षा-कवच आपकी रक्षा करता रहेगा और ज़रूरत पडऩे पर वे भी आपसे सम्पर्क कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि भोजन करने से पहले हाथों को धोने की आदत डालिए, ताकि हाथों का मैल और पसीना भोजन के जरिए पेट में जाकर रोग का कारण न बने। भोजन सदा ताजा और सात्विक लीजिए। बासी भोजन रोग और आलस्य को बढ़ाने वाला होता है। सात्विक, सीमित और ऋतु के अनुकूल भोजन करने वाला अपना चिकित्सक आप होता है। शादी-विवाह और जीमण के भोजन को संयमित रूप में लीजिए, क्योंकि वहाँ का भोजन राजसिक और गरिष्ठ होने के कारण सुपाच्य नहीं होता। सात्विक और संयमित भोजन लेने से शरीर, मन और प्राण, तीनों ही शुद्ध-सात्विक रहते हैं। सुबह का नाश्ता हमें राजा की तरह शक्तिवर्धक लेना चाहिए, दोपहर का भोजन प्रजा की तरह सीधा-साधा लेना चाहिए, परन्तु शाम का भोजन रोगी की तरह हल्का-फुल्का लेना ही श्रेष्ठ है। स्वास्थ्य का सीक्रेट है। अन्न को करो आधा, शाक-सब्जी को दुगुना, पानी पीओ तिगुना और हँसी को करो चौगुना। उन्होंने कहा कि जीवन बहुत सुन्दर है, इसे और सुन्दर बनाइए। मन ऐसा रखिए, जो किसी का बुरा न सोचे, दिल ऐसा रखिए, जो किसी को दु:खी न करे, स्पर्श ऐसा कीजिए, जिससे किसी को पीड़ा न हो और रिश्ता ऐसा बनाइए, जिसका कभी अन्त न हो।
इससे पूर्व सावनेर पहुंचने पर संत प्रवर का श्रद्धालु भाई बहनों द्वारा जयकारे लगाकर और अक्षत उछाल कर बधावणा किया गया। इस अवसरपर मानमलजी जैन, विनोद जैन, प्रसन्नकुमार जैन, बबलू जैन, शैलेश जैन, दिपक झिंजुवाडीया, दिलीप जैन, डॉ.अनुज जैन, पीयूष झिंजुवाडीया सहीत समस्त सकल जैन समुदाय प्रमुख रुपसे उपस्थित था।