12 जून को हर साल विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पूरे विश्व मे मनाया जाता है। यह दिन बाल श्रमिकों (Child Labour) को काम करने से रोकने और उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए मनाया जाता है। लेकिन लाखों प्रयास के बाद भी देश में बाल श्रम का दंश कम नहीं हो रहा है। आखिर कैसे इस दाग को हटाया और मिटाया जा सके इसे लेकर किसी भी सरकार ने आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
इसी वजह से लाखों प्रयास के बाद भी देश में बाल श्रम का दंश कम नहीं हो रहा है। बाल श्रम को रोकने के लिए भारत ने बाल श्रम पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता से खास बात की। बातचीत में उन्होंने कहा कि जब तक बच्चों को शिक्षा और परिवारों को सामाजिक सुरक्षा से नही जोड़ा जाएगा, तब तक बालश्रम रोकना संभव नही है।
जागरूकता के लिए बाल श्रम दिवस:अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठनों ने लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए 2002 से हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की। इसके पीछे का मकसद हर साल विश्व में बाल श्रमिकों की बढ़ती संख्या को रोकना है, लेकिन इतने प्रयासों के बावजूद भी बाल श्रम का दंश कम नहीं हो रहा है। अगर भारत की बात की जाए तो भारत में बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है। 1 दिन बाल श्रम दिवस मनाने या वर्कशॉप करने से इस बाल श्रम के दंश को भारत में खत्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए जरूरी है कि सामूहिक रूप से प्रयास किए जाएं और खासकर बच्चों को शिक्षा और गरीब तबके के परिवार को सामाजिक सुरक्षा से जोड़ा जाए। गरीबी और बेरोजगारी के चलते बाल श्रम के लिए बच्चों को भेजने को मजबूर हैं। भारत में बाल मजदूरी की समस्या सदियों से चली आ रही है.कहने को तो भारत देश में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है। लेकिन फिर भी भारत में बच्चों से बाल मजदूरी कराई जाती है. जो उम्र बच्चों की पढ़ने, खेलने और कूदने की होती हैं, उन्हें उसी उम्र में बाल मजदूर बनना पड़ रहा है। कहने को सरकार बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए बड़े-बड़े वादे और घोषणाएं करती हैं।
लेकिन होता कुछ नही है।
बाल श्रम की वजह से बच्चों को पर्याप्त शिक्षा, उचित स्वास्थ्य देख भाल जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। जिसकी वजह से उनका शारीरिक और मानसिक विकास भी बाधित होता है। इतनी जागरुकता के बाद भी भारत देश में बाल मजदूरी का खात्मा दूर-दूर तक नहीं होता दिखता है। बल्की बाल मजदूरी घटने के बजाय दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है।
मौजूदा समय में गरीब बच्चे सबसे अधिक इस शोषण का शिकार हो रहे हैं। जो गरीब बच्चियां होती हैं उनको पढ़ने भेजने की जगह घर में ही उनसे बाल श्रम कराया जाता है। छोटे-छोटे गरीब बच्चे स्कूल छोड़कर मजदूरी करने पर मजबूर हैं। बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक और सामाजिक हितों से प्रभावित कर रही है। जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैं, वो मानसिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं, एसे में उनके यह समस्या उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास पर एक बाधा बनकर खड़ी हो जाती है। बालश्रम की समस्या बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से भी वंचित करती है, जो कि संविधान के विरुद्ध है और मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है।