नई दिल्ली। (एजेंसी)। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने बुधवार को कहा कि 1947 में स्वतंत्रता संग्राम को सभी भाषाओं में अनिवार्य विषय नहीं बनाना ‘बड़ी गलती’ थी। उन्होंने कहा कि इससे लोगों को एक-दूसरे की देशभक्ति और देश के प्रति उनके योगदान पर सवाल उठाने का मौका मिला। आजाद ने उर्दू पत्रकारिता के 200 साल पूरे होने के मौके पर यहां आयोजित कार्यक्रम में दावा किया कि उर्दू अखबारों को इश्तिहार देना सरकारें मुनासिब नहीं समझती हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं किसी एक सरकार को इसके लिए दोष नहीं दोता हूं। उर्दू को बढ़ावा देने और उर्दू अखबारों को इश्तिहार देने की बात आती है तो कोई सरकार, कोई पार्टी उसको आगे नहीं बढ़ाती है।’ कार्यक्रम में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मौजूद थे। उन्होंने कहा, ‘उर्दू पत्रकारिता के 200 साल के इतिहास में पिछले 75 साल के अलावा 125 साल गुलामी के दौर के थे। उस जमाने में अखबार या कुछ कहना बहुत मुश्किल था।’ उन्होंने कहा, ‘उर्दू अब सिर्फ हिंदुस्तान या उपमहाद्वीप की जबान नहीं है, बल्कि यह वैश्विक भाषा बन गई है। आॅस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका तक जितने मुल्क हैं, वहां उर्दू पढ़ी और पढ़ाई जा रही है।’ अंसारी ने कहा कि अपने देश में एक अजीब सी सूरत पैदा हो गई है कि उर्दू पढ़ने वालों की तादाद कम होती जा रही है। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू के पत्रकारों और उर्दू बोलने वालों ने कुर्बानियां दी हैं, लेकिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘1947 में हमसे एक बड़ी गलती हुई। स्वतंत्रता संग्राम को अनिवार्य विषय बनाया जाना चाहिए था, लेकिन हमने अंग्रेजी और गणित को अनिवार्य विषय बनाया।’ आजाद ने कहा, ‘हमें हिंदुस्तान की आजादी के इतिहास को अनिवार्य विषय बनाना चाहिए था और इसे हर जबान में बनाना चाहिए था। इससे आज कोई (शख्स दूसरे से) यह नहीं पूछता कि तुम कौन हो? तुम यहां के हो या बाहर के हो? तुम्हारा इस मुल्क में क्या हिस्सा रहा है?