रामटेक:
रामटेक स्थित कालंका देवी महाकाली का प्रतीक है. यह मंदिर आदिशक्ति का भी प्रतीक है. भक्तों का मानना है कि जब भक्तों की आस्था भावुक हो जाती है, तो वह स्वयं को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करती है और वास्तविकता में दर्शन देती है. यहां नवरात्रि का त्यौहार डी श्रद्धा से मनाया जाता हैं.
इस दौरान मां कालंका के दर्शनार्थ श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. दू-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. चूंकि यह कोरोना का समय है, इसलिए मंदिर प्रबंधन ने श्रद्धालुओं को कोरोना के नियमों का पालन करने की हिदायत दी है.
देवी कालंका का मंदिर बहुत प्राचीन है. यह 8वीं से 9वीं शताब्दी तक का है. मंदिर में देवी कालंका की 4 फीट ऊंची संगमरमर की सुंदर मूर्ति है. प्राचीन वास्तुकला की दृष्टि से माना जाने वाला यह मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो गडमंदीर पर वाकाटक काल के मंदिर के बाद मंदिर की वास्तुकला में प्रगति के चरण को दर्शाता है. पूर्व मुखी मंदिर के दो मुख्य भाग हैं, जैसे गर्भगृह और मंडप. मंदिर का पूरा निर्माण वालुकाश्म पत्थर से किया गया है. मंदिर का शीर्ष पद्मनक्षी के अर्धवृत्त से सुशोभित है और हाथी की पीठ के आकार का है. मंदिर को प्राचीन वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक माना जाता है.
मंदिर समिति के अध्यक्ष मधुकर सहारे, सुधाकर सहारे, दिलीप देशमुख, अनिल भोरसले, अरविंद अंबागड़े, रमेश कोठारी, चंद्रकांत ठक्कर, दयाराम रेवतकर, बबन क्षीरसागर, अरुण पोकले, नत्थू घरजाले, दुर्गेश खेडगरकर, रितेश चौकसे, महेंद्र माकडे,रितेश चौकसे, सुमित कोठारी, रवींद्र महाजन, वसंत डामरे आदि भक्तगण मंदिर की देखभाल कर रहे हैं.