रामटेक।
छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल के दौरान, इस कला को शाही संरक्षण दिया गया था। उनके समय में इस कला का एक अनूठा महत्व था। यह कला बहुत फल-फूल रही थी। कुल मिलाकर यह कला बहुत ही गौरवशाली थी। महाराष्ट्र संतों की भूमि है। संतों ने लोक कला की विरासत को संजोए रखा है। संतों ने भी इस लोक कला के माध्यम से समाज को प्रबुद्ध किया है और समाज को अवांछनीय मानदंडों और गलत परंपराओं से दूर करने का प्रयास किया है। लेकिन हाल में यह लोक कला लुप्त होती दिख रही है। ऐसा लग रहा था जैसे कला लुप्त हो रही है। अतः सांस्कृतिक कार्य निदेशालय द्वारा इस लोक कला को जीवित रखने, विकसित करने एवं पोषित करने हेतु लोक कल्याणकारी योजनाओं को लोक कलाकारों तक पहुँचाने का कार्य सांस्कृतिक कार्य निदेशालय द्वारा प्रारम्भ किया गया।इसके लिए लोक कला अनुदान पैकेज समिति का गठन किया गया। और इस समिति में विशेषज्ञ लोक कलाकारों की नियुक्ति की जाती है। उस संबंध में, शाहिर अलंकार टेम्भुर्ने को समीती मे बतौर तज्ञ सदस्य चुना गया।
उन्हें सुनील केदार की सिफारिश पर और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के आदेश पर लोक कला अनुदान पैकेज समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था। जिला परिषद सदस्य के कार्यालय में नियुक्ति के लिए शाहिर अलंकार टेम्भुर्ने को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर शाहिर अलंकार टेम्भुर्ने ने अपने विचार व्यक्त किए। राज्य के पशुपालन,डेयरी विकास और खेल मंत्री सुनील बाबू केदार, सांस्कृतिक मामलों के निदेशालय और संस्कृति मंत्री अमित देशमुख, नाना पटोले कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, राजेंद्र मुलक पूर्व राज्य मंत्री, दुधराम सव्वालाखे जिला परिषद सदस्य, डॉ. रामसिंह सहारे, निदेशक निर्मल उज्ज्वल सह ऑपरेटिव संस्था, तुलाराम मेंढे, का आभार माना। इस मौके पर जिला परिषद सदस्य दुधराम सव्वालाखे, डॉ. रामसिंह सहारे, पीटी रघुवंशी, जिला अल्पसंख्यक समिति के अध्यक्ष असलम शेख, नितिन भैसारे, बबलू दुधबर्वे, प्रशांत लोनारे, किरनापुर के सरपंच विजय भूरे, सुरेश बधांटे, रमेश बीरणवार, महेंद्र दिवटे, शरद डडुरे सहित बड़ी संख्या में कलाकार मौजूद थे।