हिंदी को नई चाल में ढालने की जरूरत : प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने शुक्रवार को कहा है कि भारतेंदु और उनके समकालीन रचनाकारों ने स्‍वदेशी, स्‍वभाषा के द्वारा हिंदी को गौरवान्वित किया। हिंदी में आधुनिकता के प्रथम पंक्ति के रचनाकार भारतेंदु ने जन-जागरण के लिए हिंदी को एक अभियान के रूप में लेकर सन् 1873 में ‘हिंदी नई चाल में ढली’ को स्‍थापित किया। हिंदी को तकनीक की भाषा, ज्ञान-विज्ञान की भाषा, नये कौशल की भाषा के रूप में किस प्रकार से विकसित किया जाय, यह चुनौती हम सभी के समक्ष है। आज डेढ सौवें वर्ष में फिर से हिंदी को नई चाल में ढालने की जरूरत है। कुलपति प्रो. शुक्‍ल भारतेंदु हरिश्‍चंद्र जयंती के अवसर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में हिंदी साहित्‍य विभाग द्वारा ‘हिंदी नई चाल में ढली’ विषय पर आयोजित राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी में अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य देते हुए बोल रहे थे। बतौर वक्‍ता प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल ने कहा कि भारतेंदु बाबू एक देशवत्‍सल युगनायक थे। भारतेंदु में तुलसीदास के जैसा भाषागत आदर्श है। हिंदी नई चाल में ढली, से भारतेंदु का स्‍पष्‍ट मत है कि हिंदी नई चुनौतियों को स्‍वीकार करने के लिए तैयार है। अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. कृष्‍ण कुमार सिंह ने कहा कि भारतीय नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्‍चंद्र खड़ी बोली में बेहतरीन गद्य लेखन कर रहे थे। भारतेंदु ने ‘कविवचनसुधा’, ‘हरिश्‍चंद्र मैग्‍जीन’, ‘बाला बोधिनी’ आदि पत्रिकाओं की शुरुआत की। भारतेंदु ने कालचक्र (1884) में सृष्टि के आरंभ से ही काल गणना का विवरण दिया है, उसमें ‘हिंदी नई चाल में ढली – 1873’ का उल्‍लेख किया है।

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