समरस समाज हो देश का लक्ष्‍य : प्रो. शुक्‍ल

वर्धा।

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा है कि ममता और करुणा पर आ‍धारित समरस समाज कैसे बने यह देश का लक्ष्‍य होना चाहिए। प्रो. शुक्‍ल ‘महात्‍मा गांधी जी की हरिजन यात्रा : पुनरावर्तन’ विषय पर सामाजिक नीति अनुसंधान प्रकोष्‍ठ, गांधी एवं शांति अध्‍ययन ‍विभाग तथा दर्शन एवं संस्‍कृति विभाग द्वारा शनिवार 23 अक्‍टूबर को आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्‍यक्षता करते हुए बोल रहे थे।उन्‍होंने कहा कि महात्‍मा गांधी जी ने वर्ष 1933 में वर्धा से हरिजन यात्रा प्रारंभ की थी। गांधीजी ने नौ महीने मे लगभग दो हजार किलोमीटर की यात्रा की। इसे गांधीजी द्वारा भारत की वास्‍तविकताओं से परिचित होने के अभियान के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत का सामाजिक एकीकरण जिस रूप में होना चाहिए, सामाजिक विषमता के तौर पर एक छोटा हिस्‍सा छूट रहा है। इससे समस्‍त समाज और राष्‍ट्र कमजोर होता है। उन्‍होंने कहा कि कोई भी विचारधारा मनुष्‍य और मनुष्‍य के बीच विभेद नहीं सिखाती है। कुलपति प्रो. शुक्‍ल ने हरिजन विषय पर समसामयिक शोध की आवश्‍यकता जताते हुए समाज में करुणा, प्रेम, ममता और बंधुत्‍व की भावना विकसित होने की आवश्‍यकता पर बल दिया। इस अवसर पर अखिल भारतीय राष्‍ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्‍ट्रीय सह-संगठन मंत्री लक्ष्‍मण ने कहा कि महात्‍मा गांधी का विचार एवं सोच बहुत बड़ी है। जब तक सामाजिक विषमताएं हैं, समाज आगे नहीं बढ़ सकता। भारत को सुदृढ राष्‍ट्र बनाना हम सभी की जिम्‍मेदारी है। एक व्‍यक्ति को सम्‍मानपूर्वक जीवन जीने की ताकत हो तब भारत समर्थ हो सकता है। उन्‍होंने कहा कि जितना चंद्रयान जरूरी है उतना ही पडोसी पर ध्‍यान रखना भी। सामाजिक समरसता मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक श्‍याम प्रसाद ने कहा कि भारत में 85 प्रतिशत हिंदू हैं। हिंदुओं में जाति के आधार पर विषमता के कारण राष्‍ट्र को नुकसान हुआ है। उन्‍होंने कहा कि सामाजिक समरसता के लिए वर्धा जिले में समाजसेवी कार्यकर्ताओं को कार्य करने जरूरत है। सामाजिक विषमता के कारणों की पहचान और समस्‍याओं के समाधान के लिए अनुसंधान होना चाहिए। इस अवसर पर सामाजिक समरसता मंच, महाराष्‍ट्र प्रांत के संयोजक निलेश ने कहा कि गांधी जी ने भारतीयता को अपनाकर जोड़ने का काम किया है। राजनेता होते हुए भी उन्‍होंने कार्यालय नहीं अपितु आश्रम खोला। गांधीजी छोटी- छोटी बातों पर ध्‍यान देते हुए बड़े बदलाव को साकार करते हैं। हरिजन यात्रा से उन्‍होंने देश को जोड़ा। महात्‍मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्य अध्‍ययन केंद्र के एसोशिएट प्रोफेसर, सामाजिक नीति अनुसंधान प्रकोष्‍ठ के संयोजक डॉ. के. बालराजु ने बीज वक्‍तव्‍य में कहा कि गांधीजी ने हरिजन यात्रा शुरू करने से पहले सामाजिक समरसता के लिए हरिजन सेवक संघ की स्‍थापना की। भारत में अस्‍पृश्‍यता की जो विपरीत परिस्थिति थी उससे अंग्रेजो ने भारत के समाज को तोड़ने का काम किया। गांधीजी ने इस बात को बखूबी समझा और सामाजिक एकजुटता के लिए 1933 में हरिजनों के लिए काम करने का निर्णय लिया। हरिजन यात्रा का हेडगेवार जी ने समर्थन करते हुए गोंदिया में कार्यक्रम को सफल कराया था। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन, कुलगीत से हुई। डॉ. जगदीश नारायण तिवारी ने मंगलाचरण प्रस्‍तुत किया। अतिथियों का स्‍वागत संस्‍कृति विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी ने किया। कार्यक्रम का संचालन गांधी एवं शांति अध्‍ययन ‍विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. मनोज कुमार राय ने किया तथा दर्शन एवं संस्‍कृति विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. जयंत उपाध्‍याय ने आभार व्‍यक्‍त किया। इस अवसर पर प्रतिकुलपति द्वय प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल, प्रो. चंद्रकांत रागीट तथा प्रो. मनोज कुमार, प्रो. अवधेश कुमार, प्रो. कृपाशंकर चौबे, प्रो. सी.एन. तिवारी, प्रो. हरीश अरोड़ा, राष्‍ट्रभाषा प्रचार समिति के प्रधानमंत्री डॉ. हेमचंद्र वैद्य, गांधी विचार परिषद के भरत महोदय सहित विभिन्‍न संगठनों के पदाधिकारी, अध्‍यापक एवं शोधार्थी उपस्थित थे।

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