विदर्भ में नौ महीने में 1584 किसानों ने की आत्महत्या

पिछले नौ महीनों में विदर्भ में कुल 1,584 किसानों ने आत्महत्या की हैं. इन आत्महत्याओं के लिए केंद्र और राज्य सरकार की गलत नीतियां जिम्मेदार हैं होने का आरोप शिवसेना (उबाठा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता और महाराष्ट्र के स्व.वसंतराव नाइक की शेती स्वालंबन मिशन के पूर्व अध्यक्ष किशोर तिवारी ने लगाया है.पिछले 48 घंटों में यवतमाल जिले में बंजारा, आदिवासी और दलित समुदाय के पांच कर्जदार किसानों की आत्महत्या की घटनाएं सामने आई हैं. जब पोला, गणेशोत्सव, गौरीपूजन जैसे ग्रामीण त्योहार आते हैं तो किसानों की आत्महत्याएं समाज को झकझोर देती हैं, इस साल भी यही दोहराया जा रहा है.पिछले दो दिनों में यवतमाल जिले में किसान प्रवीण काले (हिवरी), त्र्यंबक केरम (खड़की), मारोती चव्हाण (शिवानी), गजानन शिंगणे (अर्जुना) और तेवीचंद राठौड़ (बानगांव) ने आत्महत्या कर ली.किसानों की आत्महत्या को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामने लाने वाले किसान कार्यकर्ता किशोर तिवारी ने कहा कि चालू वर्ष में विदर्भ में विभिन्न संकटों के कारण 1 हजार 584 किसानों ने आत्महत्या की है. उन्होंने यह भी दावा किया है कि यह पिछले 25 साल में रिकॉर्ड संख्या है.पिछले साल कपास, सोयाबीन की मंदी और भारी बंजरता के कारण किसानों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा है. किशोर तिवारी का आरोप है कि खेती की ऊंची लागत और बैंकों द्वारा अपर्याप्त फसल ऋण आवंटन के कारण ये आत्महत्याएं हो रही हैं. मुख्य नकदी फसल कपास की मांग कम होने से विदर्भ की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। जहां खेती की लागत बढ़ गई है, वहीं बैंकों द्वारा बहुत कम फसल ऋण दिए जाने से संकट और बढ़ गया है. जलवायु परिवर्तन कृषि संकट का कारण किशोर तिवारी ने कहा कि वर्तमान कृषि संकट का कारण वैश्विक जलवायु परिवर्तन भी है. सरकार टिकाऊ फसलों, खाद्य दलहन और तिलहन फसलों को बढ़ावा देने में विफल रही है.संसद के विशेष सत्र में चर्चा की मांग किशोर तिवारी ने आरोप लगाया कि विदर्भ में प्रतिदिन एक से अधिक किसानों के आत्महत्या करने से भविष्य में भारत की पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का दावा झूठा है. सरकार को संसद के विशेष सत्र में किसानों की आत्महत्या पर चर्चा करनी चाहिए और पीएम नरेंद्र मोदी को विदर्भ का दौरा कराना चाहिए और किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए विशेष पैकेज की घोषणा भी करनी चाहिए.

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