विदर्भ के प्रसिद्ध अष्टविनायक अठाराहभुजा गणेश

रामटेक।

भगवान राम के पदचिन्हों से पवित्र रामटेक गड मंदिर की तलहटी में अठाराहभुजा गणेश का एक प्रसिद्ध मंदिर है। गडमंदिर क्षेत्र में शैवल्य पर्वत शंबुक ऋषि का आश्रयस्थान हैं। इसी पर्वत पर विद्याधर संस्कृति थी। अठारह विषयों के विज्ञान का ज्ञान रखने वाली इस विद्याधर की दृष्टि अठारह भुजाओं वाले गणपति में मिलती है। रामटेक गड मंदिर के तल पर स्थित, मंदिर में गणेश की एक विशिष्ट अष्टकोणीय मूर्ति है। जिसे “अष्टादशभुजा गणेश” के रूप में जाना जाता है। साढ़े चार फीट ऊंची और संगमरमर से बनी गणेश जी की यह मूर्ति अद्वितीय है। इस गणेश की सोलह भुजाओं में अंकुश, पाश, खट्वांग, त्रिशूल, परशु आदि विभिन्न शस्त्र हैं।अन्य एक हाथ में मोदक और अठारहवीं भुजा में मोरपंखी कलम है.गणेशजी की सूंड घुमावदार, अर्ध्व अधर है। अठाराहभुजा वाले गणेश के सिर पर पांच मुहं वाला सांप,गले में एक सांप और कमर के चारों ओर नागपट्टा है।

500 से अधिक वर्षों के इतिहास-

वाली यह अनूठी मूर्ति न केवल विदर्भ की बल्कि महाराष्ट्र की भी विशेषता है। अठाराहसिद्धि के कारण शास्त्रपुराण में अठाराहभुजा गणपति को विघ्नेश्वर के रूप में पूजा जाता है।
इस मंदिर के केंद्र में महागणपति विराजमान हैं और बाईं ओर रिद्धि सिद्धि विराजमान हैं। पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष हुकुमचंद बडवाईक, उपाध्यक्ष रितेश चौकसे, सचिव विजय सलामे, कोषाध्यक्ष धनराज बघेले समेत अन्य सदस्य व्यवस्थाओं को संभाल रहे हैं। गणेशजी के दर्शन करने के लिए दूर-दराज से गणेश भक्त आते हैं। मंदिर हमेशा भक्तों से भरा रहता है।

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