फास्ट ट्रैक अदालतों के विस्तार पर जोर

नई दिल्‍ली. केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कैबिनेट से मांग की है कि विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों के विस्तार का काम जारी रखा जाए। बता दें कि यौन अपराधों के मामलों में जल्दी न्याय दिलाने के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया गया था।
दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद साल 2018 में आपराधिक (संशोधन) कानून लाया गया। इसके तहत केंद्र सरकार ने देशभर में 1023 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का एलान किया। इनमें से 389 अदालतें बच्चों से यौन शोषण के मामलों में त्वरित न्याय दिलाने के लिए बनाने की बात कही गई।
देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह विशेष अदालतें बनाई जानी थी। जिसके लिए केंद्र सरकार ने फंडिंग की, लेकिन अब तक 754 विशेष अदालतें ही बनाई जा सकी हैं। कई राज्यों ने विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की बात कही थी लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाईं। 31 मार्च को केंद्र सरकार की यह योजना समाप्त हो गई लेकिन कानून मंत्रालय के न्याय विभाग ने योजना के लिए आगे भी फंडिंग जारी रखने की अनुमति सरकार से ले ली है।
अब केंद्र सरकार अगले चार साल तक इस योजना को जारी रखेगी लेकिन अब 1023 की जगह 790 विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट ही बनाए जाएंगे। इन विशेष अदालतों पर सालाना 65-165 मामले निपटाने की जिम्मेदारी होती है और एक फास्ट ट्रैक के संचालन पर सालाना करीब 75 लाख रुपये का खर्च आता है।

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