नागपुर। (नामेस)।
जिंदगी से परेशान होकर और थक हारकर जिदंगी को खत्म करने वालों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। पिछले चार सालों में 1,370 लोग आत्महत्या की दहलीज पर हैं। इसमें सबसे अधिक 746 पुरुष, जबकि 624 महिलाएं हैं।
प्रादेशिक मनोचिकित्सक अस्पताल के आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रम से ये चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। गौरतलब है कि इन सभी का इलाज चल रहा है और अच्छी बात है कि अस्पताल ने 344 लोगों को आत्महत्या करने से रोकने में कामयाबी हासिल की है।
पारिवारिक झगड़ों, तनाव, अलगाव, असफलता, अवमानना, व्यसन, हीन भावना, गरीबी या कर्ज के कारण होने वाली आत्महत्याओं को रोकने के लिए प्रादेशिक मनोचिकित्सक अस्पताल ने 2010 से जागरूकता बढ़ाना शुरू किया है। तत्कालीन चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अभय गजभिये ने प्रायोगिक स्तर पर आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रमों को लागू करना शुरू किया। य़ह इस आयोजन की 11वीं वर्षगांठ है। इससे सैकड़ों मरीजों को फायदा हो रहा है। अब यही कार्यक्रम सभी जिलों में मानसिक चिकित्सालयों के मार्गदर्शन में प्रायोगिक आधार पर लागू किया जा रहा है।
54% पुरुषों ने की आत्महत्या की कोशिश!
परिवार छोटा होता जा रहा है। परिवार की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं, जिससे मानसिक कलह पैदा हो रही है। यह अवसाद, चिंता और लत की ओर जाता है। इससे ज्यादातर पुरुष पीड़ित हैं। नतीजतन, वे आत्महत्या की ओर बढ़ रहे हैं। अप्रैल 2017 और 31 अप्रैल, 2021 के बीच 54% या यूं कहे 746 पुरुषों ने इस संबंध में सोचा या आत्महत्या करने का प्रयास किया।
11 से 30 वर्ष के आयु वर्ग के विद्यार्थियों का ध्यान रखें!
जैसे-जैसे बच्चों में सहनशीलता कम होती जाती है, वैसे-वैसे आत्महत्या करने या विचार करने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इसमें 11 से 30 वर्ष के आयु वर्ग के विद्यार्थियों की बड़ी संख्या है। पिछले चार सालों में 11 से 20 साल के 36 और 21 से 30 साल के 14 विद्यार्थी आत्महत्या के बारे में विचार कर रहे थे।
कम उम्रवाले पुरुषों और महिलाओं के लिए समय कठिन!
परिवार की जिम्मेदारी, इसके बोझ से निर्माण होने वाला मानसिक संघर्ष, निराशा, चिंता इसका सबसे अधिक शिकार कम उम्र के युवा होते हैं। नतीजतन, आत्मघाती विचार बढ़ जाते हैं। पिछले चार वर्षों में 11 से 20 आयु वर्ग के कुल 852, 21 से 30 आयु वर्ग के 366 और 31 से 40 आयु वर्ग के 406 युवक आत्महत्या की कगार पर थे।
डायल 104
क्षेत्रीय मनोचिकित्सक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ पुरुषोत्तम मड़ावी ने कहा, तनावपूर्ण जीवन शैली के कारण बहुत से लोग मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। यह अवसाद और आत्मघाती विचारों के जोखिम को भी बढ़ाता है। उनके लिए हेल्पलाइन नंबर 104 उपलब्ध है। आप यहां स्वास्थ्य अधिकारियों से बात कर मदद मांग सकते हैं। इसके अलावा सभी जिला अस्पतालों में क्षेत्रीय मनोचिकित्सक अस्पताल द्वारा शुरू की गई ‘प्रेरणा’ परियोजना से भी मदद ली जा सकती है।