सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के आदेश को रद्द कर दिया है, जिसने कथित माओवादी लिंक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईंबाबा और अन्य को आरोप मुक्त कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जीएन की मुश्किलें बढ़ गई है। बता दें कि पिछले साल बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने साईंबाबा और पांच अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था।
चार महीने का दिया समय
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर चार महीने के भीतर गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से विचार करने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट को वापस भेज दिया है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वह साईंबाबा की अपील और अन्य आरोपियों की अपील उसी पीठ के समक्ष न रखे, जिसने उन्हें आरोपमुक्त किया था और मामले की सुनवाई किसी अन्य पीठ द्वारा की जाए।
इसमें कहा गया है कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत मंजूरी सहित कानून का सवाल उच्च न्यायालय द्वारा फैसले के लिए खुला रहेगा।
बता दें कि शीर्ष अदालत ने 15 अक्टूबर, 2022 को इस मामले में साईंबाबा और अन्य को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी। महाराष्ट्र सरकार की ओर से अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह पेश हुए और साईंबाबा का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने किया।
साईंबाबा के साथ ये हंै अन्य आरोपी
साईंबाबा के अलावा, बॉम्बे हाई कोर्ट ने महेश करीमन तिर्की, पांडु पोरा नरोटे, हेम केशवदत्त मिश्रा और प्रशांत सांगलीकर, विजय तिर्की को बरी कर दिया था। अपील की सुनवाई के दौरान नरोटे की मौत हो गई थी।
क्या है आरोप
साल 2014 में नक्सलियों से संबंध मामले में साईंबाबा की गिरफ्तारी हुई थी। व्हील चेयर के सहारे चलने वाले साईबाबा दिल्ली यूनिवर्सिटी के राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे।
साईंबाबा पर माओवादी लिंक और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। 14 अक्टूबर 2022 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने जीएन साईंबाबा को बरी कर दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने उन्हें तुरंत जेल से रिहा करने का आदेश भी दिया था।