नई दिल्ली. हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने-सामने है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल किया कि हाईकोर्ट की सिफारिशों को कॉलेजियम के पास विचार के लिए क्यों नहीं भेजा गया है।जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि वे इस मामले की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।जस्टिस कौल ने तो यहां तक कहा कि हमारे पास कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन मैं खुद को रोक रहा हूं। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच मोदी सरकार की ओर से नामों को मंजूरी देने में देरी का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे।जस्टिस कौल ने केंद्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘हाईकोर्ट के 80 नाम 10 महीने से लंबित हैं। इसमें केवल एक बुनियादी प्रक्रिया होती है। हमें आपके विचार जानने होंगे ताकि कॉलेजियम कोई निर्णय ले सके।’कौल की पीठ ने कहा कि 26 जजों के तबादले और एक संवेदनशील हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति लंबित है। जस्टिस कौल ने कहा, ‘मेरे पास इस बात की जानकारी है कि उच्च न्यायालय की ओर से जिन नामों की सिफारिश की गई है और वह पेंडिंग हैं लेकिन वह कॉलोजियम के पास नहीं पहुंचे हैं।बता दें कि न्यायाधीशों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट और कार्यपालिका के बीच विवाद का एक प्रमुख मुद्दा रहा है। केंद्रीय मंत्रियों ने तर्क दिया कि सरकार को न्यायाधीशों के चयन में भूमिका निभानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द कर दिया था। इसने न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को बड़ी भूमिका दी थी।न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच तनातनी पिछले साल उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की एक टिप्पणी से बढ़ गई थी। धनखड़ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कानून को बर्बाद कर दिया है। इसके तुरंत बाद, अदालत ने कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली देश का कानून है जिसका पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।
Sunday, November 24, 2024
Offcanvas menu