महानगरपालिका के शहर में 16 दहन घाट हैं. रोजाना 80 से 85 मौत होती हैं. लेकिन कोविड संक्रमण के चलते मृतकों का आंकड़ा बढ़ गया है. इसके चलते प्रतिदिन 200 से 250 अंतिम संस्कार हो रहे हैं. इसके कारण प्रत्येक घाट पर भार बढ़ गया है. दूसरी ओर अंतिम संस्कार की संख्या बढ़ने से लकड़ी का उपयोग भी बढ़ गया है.
शहर में दो-तीन दिन के लिए ही लकड़ी बची है. शहर के मोक्षधाम, अंबाझरी, गंगाबाई घाट, सहकार नगर व वैशालीनगर घाट पर शवदाहिनी की व्यवस्था है. परंतु मृत्यु संख्या बढ़ने से इन घाटों पर भी लकड़ी का उपयोग करना पड़ रहा है.इसके पहले तक घाट पर रोजाना 25 से 30 टन लकड़ा लगता था. लेकिन मृत्यु संख्या बढ़ने से प्रतिदिन 80 से 100 टन लकड़ा लग रहा है. सभी तरफ कोविड संक्रमण फैलाव की स्थिति होने से लकड़ी उपलब्ध कराने में भी परेशानी हो रही है. पिछले 15 दिनों में मृतकों का आंकड़ा 2 हजार के पार गया है. मृत्यु संख्या बढ़ने पर मृतकों के रिश्तेदारों को भी अंतिम संस्कार के लिए प्रतिक्षा करनी पड़ रही है. शहर के प्रमुख घाटों पर दिन भर में 40 से 50 अंतिम संस्कार हो रहे है. इसके साथ ही पांच प्रमुख घाटों पर शवदाहिनी की व्यवस्था होने पर 6 से 10 अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं. एक शव के अंतिम संस्कार के बाद राख निकालने के लिए भी शवदाहिनी को ठंडी होने में समय लगता है. इसीलिए शवदाहिनी पर जल्द दूसरा अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता है. छह माह का स्टॉक दो माह में ही खत्म हो गया है. मनपा के दहन घाट पर शवदाहिनी और मोक्षकाष्ठ के साथ ही लकड़ी का भी उपयोग किया जाता है. घाट कर्मचारियों के अनुसार एक साल में 7 से 8 हजार टन लकड़ी का उपयोग किया जाता है. लेकिन इस बार मृतक संख्या बढ़ने से 2 माह के भीतर आधी लकड़ी खत्म हो गई है.