नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से अपना रुख साफ ना करने पर नाराजगी जाहिर की है. साथ ही उसपर 7500 रुपये का जुर्माना लगा दिया है. वहीं केंद्र सरकार ने याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए 2 हफ्ते का और समय मांगा है. याचिका में मेघालय और अरुणाचल प्रदेश प्रदेश सहित कुल 9 राज्यों का नाम लिया गया है. याचिकाकर्ता का नाम अश्विनी उपाध्याय है. उन्होंने 1992 के अल्पसंख्यक आयोग कानून और 2004 के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. उनका कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 14 सबको बराबर के अधिकार देता है और आर्टिकल 15 भेदभाव को निषेध करता है. उन्होंने याचिका के जरिए कोर्ट से मांग की है कि अगर कानून को कायम रखा जाता है, तो जिन 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, यानी जहां उनकी आबादी कम है, वहां उन्हें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक होने का दर्जा दिया जाना चाहिए, ताकि वह भी अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभ उठा सकें. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई इस याचिका में कहा गया है कि माइनॉरिटी एक्ट की धारा-2 (सी) के तहत केंद्र सरकार ने मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन को अल्पसंख्यक घोषित किया हुआ है. लेकिन यहूदी बहाई को घोषित नहीं किया गया. इसमें कहा गया है कि देश के 9 राज्य ऐसे हैं, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें इसका (अल्पसंख्यक होने का) लाभ नहीं मिल पा रहा. राज्यों का जिक्र करते हुए इसमें कहा गया है, लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में हिंदू अल्पसंख्यक हैं.
अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग
याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा है कि इन सभी राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक होने पर भी अल्पसंख्यक होने का लाभ नहीं मिल पा रहा है. उन्हें इसका लाभ मिलना चाहिए लेकिन उनके हिस्से का लाभ उन राज्यों के बहुसंख्यकों को मिल रहा है. इसमें कहा गया है कि मिजोरम, मेघालय और नागालैंड में ईसाई बहुसंख्यक हैं और अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में ईसाई आबादी काफी है, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में माना जाता है.