-9 जिलों के 25 लाख से ज्यादा किसानों को लाभ होगा
-पूर्व सरकारों की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल
बलरामपुर. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को यूपी में देश की सबसे बड़ी नहर परियोजना का शुभारंभ किया. बलरामपुर में बनी यह सरयू नहर परियोजना 10 हजार करोड़ की लागत से पूरी हुई है. इससे पूर्वांचल के 9 जिलों के 25 लाख से ज्यादा किसानों को फायदा मिलेगा. शुभारंभ कार्यक्रम में पीएम के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी मौजूद रहीं.
सरयू नहर परियोजना को पूरा होने में 4 दशक से ज्यादा समय लग गया. 1978 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में इसका काम बहराइच जिले से शुरू हुआ. तब इसके लिए बजट 79 करोड़ रुपए रखा गया था. 1982 में बलरामपुर सहित 9 जिलों को इस परियोजना से जोड़ा गया. सरकारें बदलती गईं, लेकिन 2017 तक केवल 52 प्रतिशत ही काम हो सका. योगी सरकार के साढ़े चार साल में बाकी बचे 48 प्रतिशत काम को पूरा किया गया. अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि इस परियोजना से किसानों के खेतों की प्यास बुझेगी और हमारी संस्कृति में कहा भी जाता है कि अगर किसी प्यासे को पानी पिला दिया तो बड़ा पुण्य होता है. यह परियोजना किसानों की बड़ी जरूरत को पूरा करेगी. यह दिखाता है कि अगर सरकार की सोच ईमानदार हो तो काम दमदार होता है. पीएम मोदी ने इस मौके पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि जब मैं दिल्ली से आ रहा था तो सोच रहा था कि अभी कोई कहेगा कि इसका फीता तो उसने ही काट दिया था. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि हो सकता है कि उन्होंने बचपन में ही इस परियोजना का फीता काट दिया हो… तो मैं उनसे कहना चाहूंगा कि उनका काम फीता काटना है और हमारा परियोजनाओं को पूरा करना है. यह डबल इंजन की सरकार का कमाल है. पांच दशक से ज्यादा काम पांच साल में हो गया है.
100 गुना बढ़ गई परियोजना की लागत
पीएम मोदी ने कहा कि यह बेहद दुखद है कि देश के धन, समय और संसाधनों का दुरुपयोग होता है. 50 साल पहले शुरू हुई इस योजना की लागत 100 करोड़ रुपये थी पर आज इसे पूरा होने तक 10 हजार करोड़ की लागत हो गई है. ये व्यर्थ हुआ धन और समय जनता का है. पहले की सरकारों की लापरवाही के कारण इस परियोजना की लागत 100 गुना ज्यादा बढ़ गई है.
सपा सरकार में हुआ तीन चौथाई काम: अखिलेश
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दावा किया है कि सरयू नहर परियोजना का काम सपा सरकार में तीन चौथाई पूरा हो गया था. बाकी का काम करने में भाजपा सरकार ने पांच साल का समय लगा दिया. केंद्र के अनुसार परियोजना 1978 में शुरू की गई थी, लेकिन ‘बजटीय समर्थन की अनिरंतरता, अंतरविभागीय समन्वय और पर्याप्त निगरानी की कमी’ के कारण चार दशकों तक देरी हुई.