कपास पर लाल्या का प्रकोप, किसान चिंतित

रामटेक।

रामटेक तहसील में धान व्यापक रूप से उगाया जाता है, हाल ही में कपास के तहत क्षेत्र धीरे-धीरे बढ़ रहा है। तहसील में कपास का प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी संतोषजनक होता जा रहा है। हालांकि लगातार तीन सप्ताह से लगातार हो रही बारिश और मिट्टी में जल निकासी की प्रक्रिया धीमी होने से कपास की फसल पर लाल्या नामक बिमारी का प्रकोप शुरू हो गया है। किसानों ने इस बीमारी के प्रकोप के कारण तालुका में कपास उत्पादन में गिरावट की संभावना व्यक्त की है।इस साल के खरीफ मौसम में, रामटेक तालुका में 3500 हेक्टेयर क्षेत्र में कपास लगाया गया है। तहसील में कपास की फसल फूल और फल देने की अवस्था में है। इस दौरान कलियों के पकने के लिए फसल को थोड़ा तनाव की जरूरत होती है। हालांकि इस दौरान लगातार हो रही बारिश से मौसम में उमस हो गई है और मिट्टी में पानी की निकासी की प्रक्रिया भी धीमी हो गई है। नतीजतन, तालुका के अधिकांश खेतों में कपास के पेड़ों के पत्ते लाल हो गए हैं और गिरने लगे हैं।

धान उत्पादन में भी आएगी गिरावट-

पिछले सप्ताह के दौरान तालुका में औसतन 600 मिमी बारिश हुई है। इस खरीफ सीजन के दौरान तालुका में एक हजार मिलीमीटर बारिश हुई है। लगातार आर्द्र जलवायु ने अनाज की फसल में तुडतडा और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ा दिया है। ऐसे में धान का उत्पादन कम होने की संभावना है।

फल गिरने की गती बढ़ी-

रामटेक तालुका में कपास की फसल निकलना आमतौर पर अक्टूबर में शुरू होती है। बारिश और प्रतिकूल मौसम की वजह से कपास के पौधे के पत्ते गिरने लगे हैं। कुछ बंधों के तने काले रंग के पाए गए। कपास उत्पादकों के अनुसार, डंठल पर कवक के संक्रमण के कारण बीजकोष कमजोर हो जाते हैं और परिपक्व होने से पहले ही गिर जाते हैं। कपास का पहला तोडा बहुत महत्वपूर्ण है और जैसे-जैसे यह गिर रही है, अनुमान है कि कपास का कम से कम 40 से 50 प्रतिशत उत्पादन कम हो जाएगा।

मार्गदर्शन की कमी-

कृषि के क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि लाल्या कोई बीमारी नहीं बल्कि पोषक तत्वों की कमी है। बारिश के कारण फसलों को सूक्ष्म पोषक तत्व,पीने,खाद और छिड़काव करना संभव नहीं है। रामटेक के उपविभागीय कृषी अधिकारी अंबादास मिसाल, तालुका कृषी अधिकारी स्वप्निल माने इन दोनों महत्त्वपूर्ण कृषी अधिकारीयोंका हाल ही मे तबादला कर दिया गया है। और उनके स्थान पर पुर्णकालीक अधिकारी नियुक्त नहीं किये गये। केवल प्रभार सौंप दिया हैं। इसलिए किसानों को उपायों के संबंध में मार्गदर्शन कौन करेगा? ऐसा सवाल किया जा रहा है।

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