उमरवाड़ा से रेत का अवैध उत्खनन

 

तुमसर।

भंडारा-गोंदिया जिले में बालू की कालाबाजारी की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। हालांकि, तुमसर तालुका में मंगलवार सुबह रेत से भरे टिपर के मालिक अवैध लाइसेंस की शिकायत लेकर थाने पहुंचे। तुमसर तालुका में उमरवाड़ा से रेत निष्कर्षण इस प्रकार की रॉयल्टी। मंगलवार सुबह करीब 10 बजे उमरवाड़ा में बालू के एक ट्रक को रोका गया। मोबाइल पर कलेक्टर, खनन विभाग और राजस्व अधिकारी को अनाधिकृत लाइसेंस की सूचना दी गई। हालांकि सूचना देने के घंटों बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे पता चलता है कि जिले में बालू माफियाओं के प्रशासनिक हित काफी मजबूत हैं। पता चला है कि शिकायतकर्ता तुमसर थाने पहुंचे क्योंकि राजस्व अधिकारी अभी भी चल रहा था। तुमसर तालुका में, बावनथडी नदी के पार तिरोदा क्षेत्र में उमरवाड़ा और घाटकुरोदा दोनों घाट वर्तमान में नीलामी के लिए तैयार हैं। दोनों घाटों की नीलामी एक ही व्यक्ति करता है। यह पता चला है कि तुमसर तालुका में उमरवाड़ा घाट के लिए चक्का घाटकुरोदा में लाइसेंस का उपयोग करके अवैध रूप से रेत निकाला जा रहा है। हालांकि मामले का खुलासा होने के बाद भी यह बात सामने आई है कि पुलिस के अलावा संबंधित विभाग ने कार्रवाई की साधारण प्रक्रिया तक नहीं की है। गोंदिया जिले के खनन विभाग चक्का भंडारा के लाइसेंस का उपयोग कर संबंधित घाट नीलामकर्ता किसके आशीर्वाद से नियमों का उल्लंघन कर रहा है? यह एक बड़ा आश्चर्य है।
रेत के अवैध उत्खनन को लेकर भंडारा जिले में सैकड़ों शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। घाटों की नीलामी के बाद भी रॉयल्टी का यह खेल क्यों? इसमें जिला प्रशासन का हाथ या उंगली? यह एक ऐसी पहेली है जो अभी तक सुलझी नहीं है। तुमसर पुलिस में शिकायत दर्ज कराने वाले तहसीलदार का कोई सुराग नहीं है। तुमसर पुलिस और तहसीलदार की मौजूदगी में ही मामले की सुनवाई होगी। शिकायतकर्ता के साथ पर्यवेक्षक की वाक्पटुता कई गंभीर संदेहों का स्रोत रही है। हालांकि शिकायतकर्ता ने तुमसर पुलिस में लिखित शिकायत दर्ज कराई है।

राजस्व में डूबने के लिए प्रशासन जिम्मेदार ?

उमरवाड़ा से बालू निकालने का काम पिछले कुछ महीनों से निर्बाध रूप से चल रहा है। रॉयल्टी तिरोडा तालुका के घाटकुरोदा की बेदखली थी। जिला प्रशासन, खनिज विभाग, तोलनाके, जिला पुलिस, अंतरा जिले के पास इस बारे में पूरी जानकारी है। हालांकि मिली जानकारी के मुताबिक इन बिना लाइसेंस वाले रेत टिपरों की आर्थिक योजना बनाई गई है। क्या इसके लिए प्रशासन जिम्मेदार नहीं है ? ऐसा तीखा सवाल उमरवाड़ा की घटना से देखा जा सकता है।

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